SUDHA CHAUDHARI
Spreading awareness about Ahimsha, Non Violence and some basic issues of our society by the means of my poems, write-ups and posters.
Saturday 25 April 2015
Monday 14 July 2014
"बुलन्दी"
मैंने सिर्फ उसे जन्म दिया था
उसने मुझे नवाजा दुनिया के सबसे
खूबसूरत खिताब ‘‘माँ’’ से
मैंने उसकी ऊँगली थामी
और कदम बढ़ाना सिखाया
उसने तय कर ली एवरेस्ट की ऊँचाई
मैंने दी थी उसके हाथों में स्लिेट और बत्ती
मैंने उसे हासिल किये सोने के पदक
हौसले के पंखों की उड़ान का सपना
दिखाया था मैंने उसे
और वह चांद को
छूकर भी आ गई।
मैं अपनी धुंधलाई आँखों से उसे देख
रही हूँ, एवरेस्ट के शिखर पर
दमकते हुये स्वर्ण पदकों
के साथ और वह देख रही हैं एक
और चमकता नया आसमान
जिसे छूना है उसे
और वहाँ लिखनी है
बुलन्दी
की नई परिभाषा।
Wednesday 9 July 2014
बेटी
मेरे देश की हर बेटी को आगे आना होगा ,लक्ष्मी बाई जैसा ही इतिहास बनाना होगा /
कब तक अपने चेहरे को अपने पंखों में छुपाओगी ,
उड़ने से परहेज़ किया उड़ना ही भूल जाओगी /
अपने पंखों पर अपना आकाश उठाना होगा ,लक्ष्मी ----
दीपक के मद्धम प्रकाश में ,मंजिल न पाओगी
राह में दीपक बुझ जायेगा ,वहीँ अटक जाओगी /
अपनी हथेली पर इक जलता सूरज लाना होगा ,लक्ष्मी ----
प्रभु की द्रष्टि हम पर होना ,बात नही है कम
उनकी सृष्टि में सुधा का होना ,इसी बात का दम
अपने विचारों होगा को अपना भगवान बनाना लक्ष्मी ------/
कब तक अपने चेहरे को अपने पंखों में छुपाओगी ,
उड़ने से परहेज़ किया उड़ना ही भूल जाओगी /
अपने पंखों पर अपना आकाश उठाना होगा ,लक्ष्मी ----
दीपक के मद्धम प्रकाश में ,मंजिल न पाओगी
राह में दीपक बुझ जायेगा ,वहीँ अटक जाओगी /
अपनी हथेली पर इक जलता सूरज लाना होगा ,लक्ष्मी ----
प्रभु की द्रष्टि हम पर होना ,बात नही है कम
उनकी सृष्टि में सुधा का होना ,इसी बात का दम
अपने विचारों होगा को अपना भगवान बनाना लक्ष्मी ------/
‘दीप’
अंधेरों को दे चुनौती, घोर तम को पी रहा
फ्ररव से गर्दन उठाये, सूर्य बन कर जी रहा।
भगवान के चरणों में रख दो, आरती बन जाऊँगा
मैं तुम्हारी श्रद्धा का विश्वास बन कर जी रहा।
‘माँ’
जबसे शहर ने डाल दी, पैरों में जंजीर
मां यादों में बस गई बन कर इक तस्वीर।
दुख-सुख किससे बांट लूं, बेटा होय अधीर
शहर में सब बहरे मिले, कौन बंधाये धीर।
जादू जानती हो मां तुम, या कोई तदबीर
पानी में चावल को पकातीं, बन जाती है खीर।
हाथ में रेखा पुत्र की, पुत्र बहुत ही दूर
कोसों के है फासले, सागर गहरी पीर।
जीवन के संग्राम में वो, ढ़ाल वो ही शमशीर
इस ढ़ाल को कोई छेद सके, अभी बना नहीं वो तीर।
अंधेरों को दे चुनौती, घोर तम को पी रहा
फ्ररव से गर्दन उठाये, सूर्य बन कर जी रहा।
भगवान के चरणों में रख दो, आरती बन जाऊँगा
मैं तुम्हारी श्रद्धा का विश्वास बन कर जी रहा।
‘माँ’
जबसे शहर ने डाल दी, पैरों में जंजीर
मां यादों में बस गई बन कर इक तस्वीर।
दुख-सुख किससे बांट लूं, बेटा होय अधीर
शहर में सब बहरे मिले, कौन बंधाये धीर।
जादू जानती हो मां तुम, या कोई तदबीर
पानी में चावल को पकातीं, बन जाती है खीर।
हाथ में रेखा पुत्र की, पुत्र बहुत ही दूर
कोसों के है फासले, सागर गहरी पीर।
जीवन के संग्राम में वो, ढ़ाल वो ही शमशीर
इस ढ़ाल को कोई छेद सके, अभी बना नहीं वो तीर।
Monday 7 July 2014
‘आखिर यह राज क्या है।’
जमीन से कुछ फीट ऊँचा पलंग, ऊँची रिवाल्बिंग चेयर पर बैठी डाॅ. तृप्ति जैन की सधी और संतुलित आवाज, पिछले जन्म में भेजने की प्रक्रिया जारी है। ज्योंहि सूक्ष्म शरीर का शरीर छोड़ कर पिछले किसी जीवन में पहुंचने का क्षण आने वाला होता है, ठीक उसी समय से दर्शक को दिखाया जाता है कि वहां लेटे इन्सान के पिछले जीवन का राज क्या है ? इस राज के उजागर होने से पहिले काफी समय तक प्रक्रिया चलती रहती है जो हमे दिखाई नही जाती। यह सब होता है ऐसी एक्सपर्टस की देख-रेख में ताकि कोई नकल करके खतरा मोल न ले, ले । पूरे समय स्क्रीन पर यह पट्टी चलती ही रहती है कि मात्र देख कर यह प्रयोग न करें ।
लोग जानना चाहते हैं कि समय की मशीन को सैकड़ों वर्ष पीछे ले जाया जाय ताकि इस जीवन की कुछ प्रतिकूलतायें, अन्जाने डरों और खतरनाक बीमारियों के कारणों का पता लगाया जा सके । डाॅ. फिर उसी पिछले जन्म की अवस्था में शरीर और मन को निर्देशित कर मनोवैज्ञानिक तरीके से उस भय या अन्य शंकाओं से मुक्ति दिलवा देती हैं, जो इस जन्म तक में उस इन्सान के अचेतन में छिपी होती हैं और पीछा नहीं छोड़तीं ।
एक व्यक्ति पिछले जन्मों से जो कुछ भी जानना चाहता है उस खास जन्म तक उस व्यक्ति को पंहुचाया जाता है। उस इंसान का सूक्ष्म शरीर उस भूतकाल में पहुंच कर पूरी घटना का साफ-साफ अवलोकन करके इसी शरीर के माध्यम से कहता जाता है । इस पूरी कहानी को नाटकीय तरीके से दिखाया भी जाता है जो दर्शक को उस घटना की सत्यता का पूरा प्रमाण देते हैं।
‘राज पिछले जन्म का’ में सिर्फ पिछले एक जन्म का ही नहीं अनेक जन्मों का राज बताया जाता है। भाग एक के पूरे एपीसोडस को देखने के बाद, दो तीन प्रश्न दिमाग में कुल बुलाते हैं पहला है कि धर्म शास्त्रों में चैरासी लाख योनियों का जिक्र है, जीवात्मा इनमें से, पाप-पुण्य ये आधार पर किसी भी रूप में जन्म ले सकती है किन्तु किसी भी भाग लेने वाले ने अपने आप को मनुष्य के अतिरिक्त किसी रूप में नही देखा। न पशु न पक्षी, यह संयोग भी हो सकता है। दूसरी हैरान कर देने वाली बात यह है कि किसी ने भी स्वर्ग, नरक, जन्नत- दोजख में रहने और वहां से गुजरने की बात नही की । तीसरा प्रश्न यह भी उठता है कि भटकती आत्मायें भूत-प्रेत योनि से भी कोई मुक्त हो कर आ सकता है या नहीं? या कोई आत्मा उस योनि में पहंुची हो इसका प्रमाण नहीं दिखाया गया।
अब दर्शक देखना चाहते है ऐसे व्यक्तियों के पिछले जन्मों का राज जो पिछले जन्म में मनुष्य के अलावा कुछ और थे।
Sunday 6 July 2014
गज़ल
बैर और प्रतिशोध की दीवारें तोडि़ये
इन्सानियत ही धर्म है, नाता जोडि़ये।
इन्सान बन के देख लो, अपने हैं सब यहां
भगवान के लिये, मजहब न छोडि़ये।
कौन सी लय, छन्द, भाषा और कैसी अर्चना
संवेदना के गीतों से, रुह को झिझोडि़ये।
नफरत का समन्दर पुकारे, घड़ी-घड़ी
मोहब्बत में डूबी मन की, गंगा को मोडि़ये।
जाति की किरकिरी न हो, आंखों में किसी के
सूरज मिलेगा एक, किसी दिशा में दौडि़ये।
‘गजल’
‘गजल’
जिन वजहों से, आंगन में दीवार खड़ी की
अब भी गड़ी हैं, दीवार पर वे कांच की तरह।
चूल्हे की आग बांट ली है, राख बांट ली
खटकता है धुंआ, अब भी मन में खार की तरह।
हिलती रही बुनियाद, जैसे बूढ़े का हो जिस्म
मजबूत थी दीवार तो, फौलाद की तरह।।
दिल में जगह है रहने की, न कर फिजूल बात
दीवारों में बटां है लहू, औलाद की तरह।
आये थे जिन्दगी में कभी साज की तरह
होते हैं घर में दाखिल, वे-आवाज की तरह।
जिन वजहों से, आंगन में दीवार खड़ी की
अब भी गड़ी हैं, दीवार पर वे कांच की तरह।
चूल्हे की आग बांट ली है, राख बांट ली
खटकता है धुंआ, अब भी मन में खार की तरह।
हिलती रही बुनियाद, जैसे बूढ़े का हो जिस्म
मजबूत थी दीवार तो, फौलाद की तरह।।
दिल में जगह है रहने की, न कर फिजूल बात
दीवारों में बटां है लहू, औलाद की तरह।
आये थे जिन्दगी में कभी साज की तरह
होते हैं घर में दाखिल, वे-आवाज की तरह।
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