Monday 14 July 2014

"बुलन्दी"


मैंने सिर्फ उसे जन्म दिया था
उसने मुझे नवाजा दुनिया के सबसे
खूबसूरत खिताब ‘‘माँ’’ से
मैंने उसकी ऊँगली थामी
और कदम बढ़ाना सिखाया
उसने तय कर ली एवरेस्ट की ऊँचाई
मैंने दी थी उसके हाथों में स्लिेट और बत्ती
मैंने उसे हासिल किये सोने के पदक
हौसले के पंखों की उड़ान का सपना
दिखाया था मैंने उसे
और वह चांद को
छूकर भी आ गई।
मैं अपनी धुंधलाई आँखों से उसे देख
रही हूँ, एवरेस्ट के शिखर पर
दमकते हुये स्वर्ण पदकों
के साथ और वह देख रही हैं एक
और चमकता नया आसमान
जिसे छूना है उसे
और वहाँ लिखनी है
बुलन्दी
की नई परिभाषा।

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