Friday 4 July 2014

‘बदलाव’


 तुम्हें बदलने के लिये, अपने पसीने को बहा कर तुम्हारे खून को और अधिक सुर्ख किया। अपने सूखे हाड़ों को निचोड़ कर चर्बी की परतें चढ़ानी चाहीं थी तुम पर ।
तुम बदलने भी लगे थे, धीरे -धीरे।
तुम कहने लगे थे, खुद को बदलिये
वक्त बदल रहा है, तेजी से।
वापिस तो नही छुड़ा सकता था, तुमसे वो पसीना
वो चर्बी...................
फिर एक दिन वो, जो तुम्हें
आंचल में छुपा कर अस्पताल से लाई थी, मैं भी
तो साथ था, वो बदल गई।
दूर तारों की ओट से झांक रही होगी
और देख रही होगी, इस बदलाव को ।
और फिर मैं अस्पताल का बेड न.
इकसठ बन गया, डाॅ. ने कहा इनको रक्त
की आवश्यकता है। आपका ग्रुप इनके ग्रुप से
मिल सकता है आखिर पिता हैं, यह आपके।
मेरी लुप्त होती चेतना ने सुना तुम कह रहे थे
यह जरूरी नहीं, मेरा और इनका ब्लड
ग्रुप एक हो, आप डोनर ढूंढिये, मैं पेमेन्ट करूंगा।
मेरे मृत होते शरीर में इतनी ताकत नहीं
थी कि मैं कह संकू- बायलोजीकली मैं पिता
हूं तुम्हारा पर तुम्हारा खून मेरे खून से
कभी मेच नहीं करेगा क्योंकि तुम बदल गये
हो। तुम पुत्र तो मेरे ही हो, पर तुम्हारा खून
तो बदल चुका है।

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