Thursday 3 July 2014

‘‘चुप रह गये’’

 ‘सर’ आप रिटायर हो रहे हैं। अब, आपकी काम करने की उम्र नहीं रही। बट नो टेंशन, सरकार बड़ी दयालु है आपको हर महीने पंेशन मिलती रहेगी।
 दस से पाँच तक की ड्यूटी, पांच से दस तक की ड्यूटी में बदल गई। पोते-पोतियों के संग खेलने की इच्छा बड़ी प्रबल थी, लेकिन जरा बच्चो को देखते रहना, खिलाते रहना, हुक्मों के नीचे दब-सी गई। वर्षो से हुक्म बजा लाने की आदत जो पड़ी है।
 सुबह जब ताजी हवा खाने जायें तो लौटते समय जरा दूध और ब्रेड लेते आईयेगा। ‘‘जरा क्यों? पूरी लायेंगे’’  ताजी हवा खाने बालों को गुस्सा पीना, अपने आप आ जाता है। हाँ आजकल आप सब्जी छांटते क्यों नही ?ं सब्जी वाला बुड्ढा समझ कर आपको उल्लू बना देता है। वो तो सब्जी वाला है, तू तो मेरा वाला होकर भी मुझे उल्लू समझता है, पर तुझे उल्लू का पट्ठा नहीं कहूँगा’’
 खाना मेज पर रखा है, खा लीजियेगा, ‘‘मुझे आॅफिस के लिये देर हो रही है। खाऊँगा नहीं तो क्या करूगा ?’’, उपवास थोड़े ही करूँगा ! बच्चों को स्टाॅप से ले भी आऊँगा। फोन और बिजली का बिल जमा कर दूंगा और पंेशन भी निकाल लाऊँगा’’। रिटायर्ड आदमी को या तो चुप रहना चाहिये या हाँ-हाँ करना चाहिये। क्योकि ज्यादा सुनने का तो किसी पर वक्त ही नही होता है। ऊर्जा बचती है अपना ही समय बचता है। दो काम अपनी तरफ से कर देंगे तो हर्ज ही क्या है?
 वाह ! बाबू जी, रिटायर हो गये पर बाबू ही बने रहोगे क्या? कलम घसीटने की आदत गई नही। फालतू में कागज गूदते रहते हो जे नहीं बच्चों का गृहकार्य करा दें। ‘‘कविता का घोर अपमान’’ किन्तु रिटायर्ड आदमी को गुस्सा तो आना ही नहीं चाहिये और चिल्लाने की ताकत होती नहीं, आराम करने की उम्र है, अनायास ही कविता पूरी हो गई और मन के कागज पर लिखा गई-

 सरकार दयालु है 
सचमुच सरकार बड़ी दयालु है ।
काम तो कोई और करवाता है,
किन्तु पेंशन सरकार देती है।।
 चलो बच्चो गृहकार्य अधूरा है, हम पूरा करेंगे। दिन भर में पहली बार रिटायर्ड आदमी ने मुँह खोला।

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